चना दाल बंद ना करें – गाउट ( यूरिक एसिड वात ) या अन्य आर्थराइटिस में – Gout / uric acid vaat mein kya khaaein ?

सभी वात या आर्थराइटिस एक प्रकार के नहीं होते | गठिया/(आर्थराइटिस) रोगों के 20 से भी ज्यादा प्रकार है | Gout गठिया एक तरह का arthritis / vaat है जो जोड़ो मे यूरिक एसिड (uric acid) के जमा होने से होता है।

सिर्फ बढे हुए यूरिक एसिड को गाउट नहीं कहते | गाउट ऐसा गठिया है जिसमे अनुवांशिक या हेरेडिटिक ( Genetic / heredity ) प्रवृति और अस्वस्थ जीवनचर्या (जंक फ़ूड, बिना कसरत) के संयोग के कारण यूरिक एसिड बढ़कर जोड़ो और अन्य अंगो में जमा होने लगता है | इसके के कारण भयंकर दर्द और सूजन के साथ जोड़ो में दौरे (अटैक / gout attack) पड़ते है और अन्य अंगो को भी नुकसान पहुंच सकता है | अगर समय पर सही इलाज नही करवाया तो यूरिक एसिड जमा होकर दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचा सकता हैं।

अधिक जानकारी

क्या यूरिक एसिड बढ़ने से जोड़ो में दर्द, वात  या किसी अन्य अंगों में तकलीफ होती है ?

भविष्य में गठिया रोग की अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारा फेसबुक पेज लाइक और फॉलो करें

Gout गठिया को लेकर जो गलतफहमियां है वही इसके इलाज में सबसे बड़ी समस्या है।

सबसे बड़ा वहम जो भारतीय लोगों के दिल में है गठिया को लेकर वह यह है कि  कि इस बीमारी में दालें खासकर की चना दाल नहीं खानी चाहिए।  भारतीय गठिया विशेषज्ञ (rheumatologist) अपने दवाखाने में अक्सर ऐसे मरीजों से मिलते हैं जो सभी प्रकार की दालें, सूखे मेवे, निम्बू या खटाई, दूध पदार्थ, सब्जियां जैसे कि पालक, टमाटर, फूलगोभी, मैदा, तीखा चटपटा खाना आदि खाना छोड़ चुके होते हैं।  यह मरीज सिर्फ दलिया या उबली हुई सब्जियां खा कर अपना काम चलाते हैं। इन मरीजों का वजन कम हो जाता है पर इतने परहेज के बावजूद इन्हें Gout  के दौरे पडते रहते हैं और इनके शरीर के अंगों को नुकसान होता रहता है।

आइए देखते हैं कि क्यों इस तरह का खानपान गलत है और कैसे यह मरीजों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। जैसे कि इस चित्र में दिखाया गया है कि कैसे अधिकतर गठिया रोगी स्वादिष्ट और सेहतमंद भोजन कर सकते हैं कुछ आसान उपायों (बातों) को ध्यान मे रखकर।

1.चना दाल (dal) या दूसरी दालों और पालक (spinach / Palak), टमाटर (tomato), फूलगोभी (cauliflower) ,सब्जियों में जो प्यूरिन पाया जाता है, वह आसानी से यूरिक एसिड (uric acid) में नहीं बदलता ।

प्यूरिन के विभाजित होने पर यूरिक एसिड बनता है । प्यूरिन हमारे डीएनए (DNA) और जीन का मूलभूत अंग (बिल्डिंग ब्लॉक) है । प्यूरिन हमारी बॉडी में कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। हम इंसानों में खराब या ज्यादा प्यूरिन यूरिक एसिड में बदल जाता है ।

दालों और सब्जियों जैसे की पालक और फूलगोभी में प्यूरिन की मात्रा अधिक होती है। ऐसा माना जाता था कि इन से यूरिक एसिड बढ़ता है । लेकिन अब यह साबित हो चुका है कि पेड़ पौधों से प्राप्त (मिलने वाला) प्यूरिन यूरिक एसिड को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार नहीं है । लाल मास और समुद्री भोजन से मिलने वाले प्यूरिन के यूरिक एसिड को बढ़ाने की 50% ज्यादा संभावना है ।

फेसबुक पेज 

Arthritis and Rheumatology India (Let’s simplify arthritis) – Facebook page

2. यूरिक एसिड पेड़ पौधों ( जैसे कि चना दाल सब्जियां आदि) से मिलने वाले प्यूरिन की वजह से नहीं बल्कि ज्यादातर अस्वास्थ्यकर भोजन (unhealthy / junk food / colas ) की वजह से बढ़ता है ।

यह बात सर्व सम्मत है कि लाल मास और शराब के कारण यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ती है और Gout के दौरे पड़ते हैं। पर Gout के मरीजों में यूरिक एसिड बढ़ने का ज्यादा बढ़ा कारण जंक फूड जैसे कि वडापाव, पिज़्ज़ा, ठंडा पेय (जैसे कि पेप्सी कोला मिरांडा आदि) है। इस तरह का खानपान आपको मोटा और अस्वस्थ बनाता है । साथ ही दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ाता है ।

3. चना दाल (dal/ legumes) और अन्य दालों / उपरोक्त सब्जियों में फायबर (fibre/ रेशे ), विटामिंस (vitamins) और प्रोटीन (protein) होता है जो कि Gout गठिया मरीजों के लिए फायदेमंद होता है।

एक सम्मानित मेडिकल पत्रिका (NEJM) में प्रकाशित एक बड़े अनुसंधान में  40,000 से भी अधिक व्यक्तियों की खानपान की आदतों पर शोध किया गया।(शोध देखने के लिए यहां क्लिक करे)। इस अनुसंधान से यह साफ प्रमाणित होता है कि पेड़ पौधों से मिले खाने और दूध पदार्थ से Gout के दौरे का खतरा नहीं बढ़ता।  इस अनुसंधान के आधार पर अमेरिकन और यूरोपियन rheumatologist, गठिया रोगियों के लिए कम वसा वाले दुग्ध पदार्थ और ज्यादा शाकाहारी और कम मांसाहारी खाने की सलाह देते हैं।(निर्देशो पर नजर डालने के लिए यहां क्लिक करें पेज क्रमांक 1439 देखें)

4. भारतीय (Indian) खाने में दालें (dal ) प्रोटीन (protein) का मुख्य माध्यम है, गठिया रोगियों का दालें छोड़ना नुकसानदायक हो सकता है।

भारतीय भोजन मुख्यता शाकाहारी होता है। एक आम भारतीय मांसाहारी व्यक्ति भी भोजन में ज्यादातर शाकाहारी खाना ही खाता है। हर रोज 30 से 70 ग्राम से ज्यादा दाल वह नहीं खाते हैं। यह मात्रा बहुत कम है यूरिक एसिड को बढ़ाने के लिए।दालें Gout पेशेंट के लिए प्रोटीन का बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है क्योंकि उन्हें मांसाहारी भोजन का सेवन कम करना पड़ता है।

5. फिर काफी भारतीय डॉक्टर और आयुर्वेद डॉक्टर मसालेदार खाने, निम्बू या खटाई, दालें, कई सब्जियां और दुध, दही (milk, curd) और ठन्डे पदार्थ का गठिया / Gout vaat रोगियों को परहेज करने के लिए क्यों कहते हैं?

क्योंकि शायद वह अभी भी पुरानी अवधारणाओं का पालन कर रहे हैं। यह मान्यता की ठंडे (cold food) खाने,निम्बू (lemon) या खटाई (sour food), दालें और दूध (dairy) पदार्थ से आर्थराइटिस (arthritis) होता है किसी भी अच्छी शोध में प्रमाणित नहीं हो पाया है।

6. फिर जब मैंने पहले दालें छोड़ दी थी तब मुझे Gout के दौरों से आराम क्यों मिला?

शुरुआती (Gout) के दौरे बहुत दर्दनाक होते हैं पर बहुत ही कम समय के लिए आते हैं। आप कुछ छोड़े या ना छोड़े तो भी यह दौरे रुक जाएंगे और कुछ महीनों के लिए वापस नहीं आएंगे।यूरिक एसिड अनुवांशिक कारणों से आपके शरीर में जमा होता रहेगा। कुछ समय पश्चात अगर आप सभी प्रकार का खाना खाना छोड़ भी देंगे तो भी आपको दौरे पड़ते रहेंगे अगर इलाज ना किया जाए ।

7. तो फिर Gout के रोगी को क्या खाना चाहिए ?

सबसे पहले इस बात की पुष्टि कीजिए कि आपको Gout गठिया है। Rheumatologist (गठिया विशेषज्ञ) की सलाह लिजिए । बहुत से भारतीय डॉक्टर यूरिक एसिड के लिए दवाइयां दे देते हैं जो कि गलत है। आपको सिर्फ बढ़े हुए यूरिक एसिड के लिए दवाइयां लेने की जरूरत नहीं है। यूरिक एसिड अपने आप में कोई नुकसान नहीं पहुंचा था अगर अनुवांशिक प्रवृत्ति या Gout ना हो तो।

आहार में लाल मांस और शराब की मात्रा को सीमित कीजिए। जंक फूड और मैदा खाने से बचें। मीठे पदार्थों जैसे कि कोला, मिठाईयां और शरबतों से परहेज करें, क्यूंकि मीठे से मोटापा और उससे uric acid बढ़ सकता है |अपने आहार में ज्यादा सब्जियां, फल, सूखे मेवे, दालें (chana, tur, moong etc), गेहूं (whole wheat), जई (jowar), बाजरा आदि अनाजों से बने हुए दलिया या आटे का प्रयोग करें | निम्बू या खटाइ के परहेज की ज़रूरत नहीं है | निम्बू में विटामिन C होता है जो यूरिक एसिड कम करने में फायदेमंद हो सकता है | सफेद चावल कम खाएं या फिर ब्राउन चावल खाना शुरू करें। पानी ज्यादा मात्रा में पिए क्योंकि यह यूरिक एसिड को शरीर से निकाल देता है। कम वसा वाला दूध और दही (low fat milk & curd) भी गठिया रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है।

किसी भी किस्म का व्यायाम जरूर करें। सबसे आसान है नियमित टहलना । अपनी Gout गठिया/वात की दवाइयां नियमित रूप से लें।

आपको सिर्फ बढ़े हुए यूरिक एसिड के लिए दवाइयां लेने की जरूरत नहीं है। यूरिक एसिड अपने आप में कोई नुकसान नहीं पहुंचा था अगर अनुवांशिक प्रवृत्ति या Gout ना हो तो।यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि एक साधारण व्यक्ति का यूरिक एसिड 7 से 7.5 हो सकता है। सिर्फ Gout के मरीजों को ही इसे 6 के नीचे रखने की जरूरत है |

Gout गठिया में uric acid 6 या नीचे तक का टार्गेट रखें :

आपको Gout के दौरों से बचने के लिए अपना यूरिक एसिड 6 के नीचे रखना होगा । यह उन्ही के लिए लागू होता है जिन्हे gout है |जब uric acid की मात्रा 6 के ऊपर पहुंचती है, तबअनुवांशिक प्रवृति के कारण कुछ ही लोगो में uric acid जोड़ो और अन्य अंगो जमा होने लगता है । यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि एक साधारण व्यक्ति का यूरिक एसिड 7 से 7.5 हो सकता है। सिर्फ Gout के मरीजों को ही इसे 6 के नीचे रखने की जरूरत है। इस लक्ष्य को पाने के लिए अधिकतर Gout मरीजों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन के साथ जीवन भर Zyloric (Allopurinol) / Febuxostat जैसी दवाइयां लेनी पड़ती है। सही दवा के साथ एक गठिया रोगी सीमित मात्रा में मांस और शराब का सेवन भी कर सकता है।

आपको गठिया या वात रोग के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए तो कृपया हमारे फेसबुक पेज को लाइक या सब्सक्राइब करें, ताकि आपको आगे भी ऐसी जानकारी मिलती रहे l हमारे फेसबुक पेज का लिंक नीचे दिया गया है |
फेसबुक पेज 

Arthritis and Rheumatology India (Let’s simplify arthritis) – Facebook page

Translated in hindi by Nutan Lodha

खंडन और एहतियात बरतें

इस वेबसाइट पर किसी भी लेख या जानकारी का उद्देश्य रोगियों को उचित ज्ञान और रुमेटोलॉजी और गठिया से संबंधित बीमारियों के बारे में सूचना देना है। यदि कोई अपनी बीमारी को ठीक से समझता है, तो वे विशेषज्ञ चिकित्सक से चर्चा करके अपने इलाज के लिए सही फैसला कर सकते है | हम मानते हैं कि सही जानकारी के साथ सशक्त होने से, मरीज अपने इलाज में सुधार कर सकता है और गलत दावों से बच सकता है । इस वेबसाइट पर दी हुई जानकारी बिमारी के बारे में सामान्य जानकारी है और विषिष्ठ चिकित्सा सलाह नहीं है |इस वेबसाइट पर सभी जानकारी प्रमाणित गठिया विशेषज्ञ चिकित्सक (रुमेटोलॉजिस्ट) द्वारा सत्यापित की गई है। हालांकि यह जानकारी प्रमाणित है,यह जानकारी चिकित्सा क्षेत्र की निरंतर बदलती प्रकृति के कारण पुरानी हो सकती है। हम इसे प्रमाणित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन यह हमेशा संभव नहीं होता है।इस वेबसाइट पर दी गयी जांनकारी को अपने डॉक्टर की राय लिए बिना फॉलो या अनुमान करना खतरनाक और घातक हो सकता है। कृपया केवल इस जानकारी के आधार पर किसी भी उपचार पर निर्णय न करें। किसी भी उपचार के फैसले करने से पहले, कृपया अपने रुमेटोलॉजिस्ट या विशेषज्ञ डॉक्टर की राय लें और तदनुसार उनका पालन करें।

Author: Dr Nilesh Nolkha, Rheumatologist
Dr Nilesh Nolkha is a rheumatologist who strongly believes in patient education and empowering patients to make rational treatment decisions. He is a practicing rheumatology consultant in Wockhardt hospital, Mumbai.

Share on

There are no comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

[elementor-template id="5701"]

Start typing and press Enter to search

Shopping Cart